गुजरात के मुख्यमंत्री पद से विजय रुपाणी ने शनिवार को इस्तीफा दे दिया है. रुपाणी ने सीएम की कुर्सी ऐसे समय छोड़ी है जब ठीक एक साल के बाद गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं.
नरेंद्र मोदी गुजरात के इकलौते ऐसे सीएम रहे हैं, जिन्होंने न सिर्फ अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया बल्कि 2001 से लेकर 2014 तक लगातार सत्ता पर काबिज रहे. बीजेपी को मोदी जैसा प्रभावी चेहरा राज्य में दूसरा नहीं मिल सका, जिसका नतीजा है कि 2014 में उनके गुजरात से हटने के बाद बीजेपी की सियासी पकड़ कमजोर हुई है. ऐसे में बीजेपी को सात सालों में तीसरा मुख्यमंत्री गुजरात में बनाना पड़ रहा है.
मोदी ने 13 साल संभाली गुजरात की कमान:-
नरेंद्र मोदी 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के बाद साल 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपनी सियासी विरासत आनंदीबेन पटेल को सौंपी थी. 22 मई 2014 को आनंदीबेन पटेल ने राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली, लेकिन वो महज दो साल ही सीएम की कुर्सी पर रह सकीं. गुजरात में पटेल आरक्षण आंदोलन के चलते आनंदीबेन पटेल को सीएम की कुर्सी 7 अगस्त 2016 को छोड़नी पड़ी. आनंदीबेन पटेल पाटीदार समुदाय से होने के बाद भी गुजरात में अपना सियासी असर नहीं जमा सकीं और 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक सवा साल पहले उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. आनंदीबेन पटेल को हटाकर जैन समुदाय से आने वाले विजय रुपाणी को साल 2016 में गुजरात सत्ता की कमान सौंपी गई. इससे पहले रुपाणी आनंदीबेन सरकार में मंत्री थे. 2017 का विधानसभा चुनाव बीजेपी ने विजय रूपाणी के नेतृत्व में लड़ा था, लेकिन यह चुनाव जीतने में बीजेपी को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी.
सियासी कद स्थापित करने में विफल रहे रुपाणी?:-
पांच साल तक गुजरात के सीएम रहने के बाद भी रुपाणी अपना सियासी कद स्थापित नहीं कर सके थे. बीजेपी के दो शीर्ष नेता पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह, दोनों गुजरात से आते हैं. ऐसे में गुजरात में बीजेपी का कमजोर पड़ना बाकी राज्यों के लिए ठीक संकेत नहीं होगा. ऐसे में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी किसी तरह का कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती, जिसके चलते रुपाणी को कुर्सी गंवानी पड़ी. बता दें कि अक्टूबर 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहली बार नरेंद्र मोदी काबिज हुए थे, उस वक्त बीजेपी के केशुभाई पटेल अपना चार साल का कार्यकाल पूरा कर चुके थे. राज्य में बीजेपी की सियासी जमीन तैयार करने में केशुभाई पटेल की खास भूमिका रही, जिसके चलते पार्टी में उनकी तूती बोलती थी. ऐसे में नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद राज्य में जिस तरह से अपनी पकड़ बनाई है, वो आसान नहीं था.
दिग्गजों के बीच आए थे मोदी:-
बीस साल पहले गुजरात में केशुभाई पटेल ही नहीं बल्कि संजय जोशी, शंकर सिंह बघेला और हरेंद्र पांडेया जैसे बीजेपी के कद्दावर नेता हुआ करते थे. लालकृष्ण आडवाणी भी गुजरात से लोकसभा चुनाव लड़ा करते थे. इतना ही नहीं मोदी के सीएम रहते हुए केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए की सरकार थी. इसके बाद भी नरेंद्र मोदी सत्ता पर काबिज होने के बाद ऐसे मजबूत तरीके से अपने सियासी पैर जमाए कि उन्हें कोई उखाड़ नहीं सका. वो अपने दम पर गुजरात में तीन बार बीजेपी को जिताकर सत्ता में लाए और मुख्यमंत्री बने. नरेंद्र मोदी के सियासी कद बढ़ने के साथ-साथ केशुभाई पटेल से लेकर संजय जोशी तक गुजरात बीजेपी में साइडलाइन हो गए. इसी के चलते केशुभाई ने बीजेपी से नाता तोड़कर गुजरात परिवर्तन पार्टी का गठन कर 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाई, लेकिन नरेंद्र मोदी के आगे उनका जादू नहीं चल सका. गुजरात में मोदी की अगुवाई में सत्ता की हैट्रिक लगी.
हालांकि, चुनाव नतीजे के बाद नरेंद्र मोदी ने केशुभाई से जाकर मुलाकात की, जिसके बाद 2014 में उन्होंने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया. नरेंद्र मोदी ने अपने दम पर 2014 के लोकसभा चुनाव का जंग फतह कर गुजरात से दिल्ली आ गए और देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर दूसरी बार काबिज हैं. वहीं, गुजरात में मोदी के बाद बीजेपी तीसरा सीएम बनाने जा रही है, लेकिन कोई नेता अभी तक अपना सियासी प्रभाव नहीं छोड़ सका. ऐसे में देखना है कि विजय रुपाणी की जगह बीजेपी किसे सीएम के तौर पर आगे लाती है?