शनि प्रदोष व्रत’ की तिथि, समय, महत्व और पूजा विधि के बारे में जानें

Neemuch Headlines September 4, 2021, 7:41 am Technology

प्रदोष भगवान शिव की पूजा से जुड़ा है. इसे प्रदोषम् के नाम से भी जाना जाता है. ये एक द्विमासिक उत्सव है और हिंदू कैलेंडर में हर पखवाड़े के तेरहवें दिन होता है. जब प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ता है तो इसे शनि प्रदोष व्रत के रूप में जाना जाता है और ये सभी प्रदोषों में सबसे अधिक महत्व रखता है क्योंकि ये शनि ग्रह से मेल खाता है.

शनि प्रदोष व्रत 2021 का महत्वपूर्ण समय:-

प्रदोष पूजा मुहूर्त : 06:39 सायं – 08:56 सायं अवधि: 2 घंटे 16 मिनट

त्रयोदशी प्रारंभ : 04 सितंबर, 2021 प्रात: 08:24 बजे

त्रयोदशी समाप्त : 05 सितंबर, 2021

प्रात: 08:21 बजे सूर्योदय : प्रात: 06:21 बजे सूर्यास्त : सायं 06:39 बजे

ब्रह्म मुहूर्त 04:30 प्रात: – 05:15 प्रात:

शनि प्रदोष व्रत का महत्व:-

प्रदोष का हिंदी अर्थ ‘रात का पहला भाग’ होता है. इसलिए इस दिन की पूजा संध्याकाल में ही की जाती है. भक्तों का ऐसा मानना ​​है कि प्रदोष के दिन देवी पार्वती के साथ भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और अगर भक्त उपवास करेंगे और उनका आशीर्वाद लेंगे, तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी.

शनि प्रदोष : किंवदंती:-

स्वयं को असुरों, देवताओं से बचाने के लिए, दिव्य देवता कैलाश पर्वत पर दौड़े और उनकी सहायता के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे. भगवान शिव अपने पवित्र बैल नंदी के साथ वहां मौजूद थे और त्रयोदशी की संध्या के दिन, भगवान शिव ने असुरों पर विजय प्राप्त करने में उनकी सहायता की. इसलिए, त्रयोदशी दिवस अब भगवान शिव और नंदी की पूजा के साथ मनाया जाता है.

शनि प्रदोष की पूजा विधि:-

इस दिन पूजा करने से भक्तों का मानना ​​है कि भगवान उदारता से उन्हें संतोष, स्वास्थ्य, धन और सौभाग्य प्रदान करेंगे.

पूजा विधि पर एक नजर डालें:- 

-प्रदोष का अर्थ संध्याकाल से है, इसलिए पूजा संध्या काल में ही की जाती है.

– कुछ भक्त बिना सोए 24 घंटे उपवास करते हैं और वो कुछ भी नहीं खाते हैं. वो सायं काल को प्रसाद ग्रहण करने के बाद अपना उपवास तोड़ते हैं.

– कुछ लोग केवल पूजा करते हैं और उपवास नहीं करते हैं, वो प्रदोष व्रत की सुबह जल्दी स्नान करते हैं, सायं काल के समय वो मूर्तियों के सामने दीपक जलाते हैं और नैवेद्य चढ़ाते हैं.

– भक्त जलाभिषेक के लिए शिव मंदिरों में जाते हैं.

– भगवान शिव, मां पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय और नंदी की मूर्तियां मिट्टी की बनी होती हैं.

– शिवलिंग को घी, दूध, शहद, दही, चीनी, भांग, गंगाजल, इत्र आदि कई चीजों से स्नान कराकर ‘ऊं नमः शिवाय’ का जाप करते हुए अभिषेक किया जाता है.

– महामृत्युंजय मंत्र, शिव चालीसा और अन्य मंत्रों का जाप किया जाता है.

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