नीमच। एक सरल और संवेदनशील कलेक्टर जिसने कोरोना से लड़ाई में नीमच जिले का नेतृत्व किया और आत्मविश्वास के साथ चिकित्सा व्यवस्थाओं में सुधार के प्रयास किये. कार्यकाल के 11 में से 6 माह कोरोना से लड़ाई में बीते. दहशत, डर और अनिश्चितता के उस माहौल में किसी भी सूरत में फ़ोन उठाने या जवाबी कॉल करने वाले कलेक्टर रहे जितेंद्र सिंह राजे. कोरोना के मरीज़ों को गर्म पानी नहीं मिल रहा हो या काढ़ा, खबरें लिखने की बजाए फ़ोन करने पर व्यवस्था हो रही थी.
पूर्व जिला पंचायत सीईओ भव्या मित्तल और कलेक्टर जितेंद्र सिंह राजे ने उस दौरान हर मोर्चे पर आईसीएमआर की गाईड लाईन के तहत जिले को मिल सकने वाली सुविधाओं के पूर्वानुमान लगाते हुए पहले से तैयारी की और सुविधाएं जुटाने की पहल की. उसी के तहत प्रदेश में पहली ट्रूनॉट मशीन नीमच जिले में स्थापित हुई जिससे हमें कोरोना परीक्षण की सुविधा अन्य जिलों के मुकाबले सबसे पहले मिली.
कलेक्टर जितेंद्र सिंह राजे के तबादले पर 'व्यक्तिगत शुचिता' और जिले से 'इनपुट' की बात सामने आई है. मिलावटखोरों के ख़िलाफ़ अभियान सहित कई अन्य अभियानों व योजनाओं में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लगभग आधा दर्जन बार जिला प्रशासन व कलेक्टर राजे की तारीफ़ की. उसके बाद उन्हें यह नया 'इनपुट' किसने दिया ? खैर!
जिले के जनप्रतिनिधी जब कोरोना से संक्रमित होकर इंदौर-भोपाल के बड़े अस्पतालों में भर्ती थे, उस दौरान श्री राजे ने नीमच में आम लोगों के लिये चकाचक आईसीयू तैयार कर दिया था. मरणासन्न जिला अस्पताल के लिये यह एक बड़ी उपलब्धि और नीमच के गरीब नागरिकों के लिए एक बड़ी सुविधा थी, जो भोपाल-इंदौर नहीं जा सकते थे. जनप्रतिनिधियों ने इस आईसीयू के लोकार्पण पर इसका पहली बार निरीक्षण किया तो सभी दंग रह गये. उसी आईसीयू में जनप्रतिनिधी अब तक विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्ति नहीं करवा पाए हैं जिसे श्री राजे ने बनवाया था.
मुख्यमंत्री शिवराज को यह 'इनपुट' कौन देगा !
जहां तक श्रेय की बात है नीमच में दानदाताओं व निजी संस्थाओं के सहयोग से नई डायलिसिस मशीनें लगाने की पहल कलेक्टर ने की और लोकार्पण जनप्रतिनिधियों से करवाया. लेकिन कोरोना काल में "आपदा प्रबंधन समिती" को "आपदा निमंत्रण समिती" बनाने में जनप्रतिनिधियों का कितना योगदान है उसका जिक्र भी किया जाना चाहिये.
खाद्य विभाग के अमले व अधिकारियों पर सामान्य कार्रवाइयों में भी व्यापारियों में दहशत फैलाने के मामले सामने आए हैं और ऐसे मामलों की मॉनीटरींग होनी थी, लेकिन नीमच जिले में मिलावटखोरों के ख़िलाफ़ हुई कार्रवाइयों में अधिकार क्षेत्र के तहत जिला कलेक्टर द्वारा रासुका लगाई गई. तो रंगीन और ज़हरीले गेहूं व मसाले खाने वाली जनता तय करे कि आखिर किस ज़हरीले कारोबारी पर रासुका की गलत कार्रवाई हुई !
नीमच में मेडिकल कॉलेज की स्वीकृति के बाद जनप्रतिनिधियों ने आपसी खींचतान के बाद बार-बार मेडिकल कॉलेज को लेकर स्थान भी बदले और बयान भी बदले. 30 करोड़ रुपये की राशि जारी होने के बाद भी जनप्रतिनिधियों ने प्रोटोकॉल और दखल की वजह से मेडिकल कॉलेज के कार्य को होल्ड पर रख कलेक्टर के हाथ बांध दिये. विधायकगण एक तरफ़, मंत्री एक तरफ़ और सांसद एक तरफ़. ऐसी स्थिति में प्रोजेक्ट की गति को धीमा करने वालों के बारे में 'इनपुट' मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कौन देगा!
श्री नंदकुमारम भी गये थे. उनके बाद कई कलेक्टर गए और कई आएँगे. 'सुरखाब' के पर न तो उनमें लगे थे, ना हममें लगे हैं. मगर इसी जनता, इन्हीं जनप्रतिनिधियों और इसी सिस्टम के बीच अपने कार्यकाल में जो काम कलेक्टर जितेंद्र सिंह राजे ने किये हैं और जो उन्हें करने दिये गये हैं, उन कार्यों के लिये ये कोरोना योद्धा, तारीफ़ ना सही कम-से-कम सम्मानजनक विदाई के हकदार तो हैं।