अवसाद अर्थात डिप्रेशन। जीवन में अफसलता या अन्य किसी कारण से व्यक्ति अवसाद का शिकार हो जाता है। इसके चलते भय, हताशा, निराशा, चिड़चिड़ापन और अनावश्यक तनाव बना रहता है।
यदि समय पर इसे समझा नहीं गया तो यह कई पर अपने चरम स्तर पर पहुंचकर हत्या या खुदकुशी करने की नौबत भी पैदा कर देता है। यदि व्यक्ति ऐसा नहीं कर पाता है तो नशे में डूब जाता है। ऐसे में योग के ये तीन टिप्स बहुत की फायदेमंद सिद्ध हो सकती है।
1. प्राणायाम : सबसे जरूर समझने वाली बात यह है कि 'मन के भाव' हमारी श्वासों से नियंत्रित होते हैं। यदि आप गौर करेंगे तो क्रोध के समय आपकी श्वास अलग तरह से चलेगी और प्रसन्नता के समय अलग। इसी तरह अवसाद के समय हमारी श्वासों पर मस्तिष्क के विचारों का नियंत्रण हो जाता है। ऐसे में इसे नियंत्रण को प्राणामस से मुक्त कर सकते हैं। इसीलिए हर तरह के तनाव या अवसाद को प्राणायाम से नियंत्रित किया जा सकता है। प्राणायाम में भ्रामरी, भ्रस्त्रिका और कपालभाति को सीखकर करें।
प्रात: और सोने से पूर्व यह प्रणायाम आप नियमित करते हैं तो मस्तिष्क में ऑक्सिजन का लेवर बढ़ जाएगा और आप धीरे-धीरे खुद में आत्म विश्वास संचार होना है और जीने की नई राह खुलती है। चंद्रभेदी, सूर्यभेदी और भ्रामरी प्राणायाम को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लें।
भ्रामरी प्राणायम : दोनों हाथों के अंगूठे से दोनों कान बंद कर लें। दोनों हाथों की ऊपर की दो अंगुलियों को माथे पर रखें। तीसरी से नाक के बीच के भाग को हलका दबाएं। बाकी की दोनों अँगुलियों को होंठों के ऊपर रखें। कोहनी ऊपर उठाए रखें। अब नासिका से पूरा श्वास भरें। कुछ क्षण आंतरिक कुम्भक कर नासिका से ही भौंरे की तरह गुंजन करते हुए धीरे-धीरे श्वास छोड़ें अर्थात रेचक करें। इसे चार से पाँच बार करें। इस गुंजन से कंपन पैदा होता है, जो मस्तिष्क तथा स्नायुमंडल को शांत करता है।
योग पैकेज : प्राणायाम में भ्रामरी और योगासनों में जानुशिरासन, सुप्तवज्रासन, पवनमुक्तासन, पश्चिमोत्तानासन, उष्ट्रासन, ब्रह्ममुद्रा या फिर रोज सूर्य नमस्कार करें। प्रतिदिन पाँच मिनट का ध्यान करें। आप चाहें तो 20 मिनट की योग निद्रा लें जिसके दौरान रुचिकर संगीत पूरी तन्मयता से सुनें और उसका आनंद लें। यदि आप प्रतिदिन योग निद्रा ही करते हैं तो यह रामबाण साबित होगी।
2. शवासन : शव का अर्थ होता है मुर्दा अर्थात अपने शरीर को मुर्दे समान बना लेने के कारण ही इस आसन को शवासन कहा जाता है। श्वास की स्थिति में हमारा मन शरीर से जुड़ा हुआ रहता है, जिससे कि शरीर में किसी प्रकार के बाहरी विचार उत्पन्न नहीं होते। इस कारण से हमारा मन पूर्णत: आरामदायक स्थिति में होता हैं, तब शरीर स्वत: ही शांति का अनुभव करता है। आंतरिक अंग सभी तनाव से मुक्त हो जाते हैं, जिससे कि रक्त संचार सुचारु रूप से प्रवाहित होने लगता है। और जब रक्त सुचारु रूप से चलता है तो शारीरिक और मानसिक तनाव घटता है। खासकर जिन लोगों को उच्च रक्तचाप और अनिद्रा की शिकायत है, ऐसे मरीजों को शवासन अधिक लाभदायक है। विधि : पीठ के बल लेटकर दोनों पैरों में ज्यादा से ज्यादा अंतर रखते हैं। पैरों के पंजे बाहर और एड़ियां अंदर की ओर रखते हैं। दोनों हाथों को शरीर से लगभग छह इंच की दूरी पर रखते हैं। हाथों की अंगुलियां मुड़ी हुई, गर्दन सीधी रहती है। आंखें बंद रखते हैं। शवासन में सबसे पहले पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक का भाग ढीला छोड़ देते हैं।
पूरा शरीर ढीला छोड़ने के बाद सबसे पहले मन को श्वास-प्रश्वास के ऊपर लगाते हैं और हम मन के द्वारा यह महसूस करते हैं कि दोनों नासिकाओं से श्वास अंदर जा रही है तथा बाहर आ रही है। जब श्वास अंदर जाती है तब नासिका के अग्र में हलकी-सी ठंडक महसूस होती है और जब हम श्वास बाहर छोड़ते हैं तब हमें गरमाहट की अनुभूति होती हैं। इस गर्माहट व ठंडक को अनुभव करें। इस तरह नासाग्रस से क्रमश: सीने तथा नाभि पर ध्यान केंद्रित करें। मन में उल्टी गिनती गिनते जाएं। 100 से लेकर 1 तक। यदि गलती हो जाए तो फिर से 100 से शुरू करें। ध्यान रहे कि आपका ध्यान सिर्फ शरीर से लगा हुआ होना चाहिए, मन में चल रहे विचारों पर नहीं। इसके लिए सांसों की गहराई को महसूस करें।
नोट : आंखें बंद रखना चाहिए। हाथ को शरीर से छह इंच की दूरी पर व पैरों में एक से डेढ़ फीट की दूरी रखें। शरीर को ढीला छोड़ देना चाहिए। श्वास की स्थिति में शरीर को हिलाना नहीं चाहिए।
3. ध्यान : मात्र 10 मिनट का ध्यान आपको हर तरह की समस्या से बाहर निकालने की क्षमता रखता है। ध्यान की सैंकड़ों विधियां हैं आप उनमें से किसी भी एक को सीखकर अपने घर में नियममित रूप से करें। शर्तिया आपको जीवन में कभी भी चिंता, अवसाद और तनाव नहीं होगा। धन्यान से मस्तिष्क का वह हिस्सा भी जागृत होने लगता है जो अब तक सोया था और वह आपके सही दिशा दिखाता है और आपमें भरपूर आशा और उर्जा का संचार हो जाता है।