नीमच। मृत्यु जीवन का शाश्वत सत्य है जो एक न एक दिन आनी ही है। हम जिस धन संपत्ति सुख समृद्धि और वैभव के लिए रात दिन पाप कर्म कर दौड़ रहे हैं वह सब मृत्यु के बाद इसी धरती पर रह जाएगा। हमारे साथ कुछ नहीं जाएगा। हमारे साथ सिर्फ जाएगा तो पुण्य कर्म, इसलिए हम पुण्य कर्म करने की और अग्रसर रहे और नवपद वपद ओली जी की आराधना की साधना की तपस्या करें और अपनी आत्मा को पवित्र बनाएं तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। मृत्यु के बाद धन संपत्ति वैभव साथ नहीं जाते हैं साथ सिर्फ पुण्य कर्म जाते हैं।। यह बात साध्वी अमीदर्शा श्री जी मसा ने कही। वे श्री जैन श्वेतांबर भीडभंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट नीमच के तत्वावधान में आयोजित अमृत प्रवचन श्रृंखला में बोल रही थी। उन्होंने कहा कि आंखों पर बंधी राग द्वेष की पट्टी को खोलना होगा । और जीव दया का पालन करना होगा तपस्या करने पर अहंकार का त्याग करना होगा। तपस्या करते समय सरल बन कर क्रोध का भी त्याग करना होगा तभी वह सार्थक हो सकती है। हमको हमारी आत्मा की चिंता नहीं है। हमें आत्मा को शाश्वत पवित्र बनाना है तभी हमारा कल्याण हो सकता है। हम जब कभी पवित्र तीर्थ दर्शन के लिए जाएं तो वहां सुख सुविधा नहीं तपस्या और साधना पर अपना ध्यान केंद्रित करें तभी वह तीर्थ दर्शन यात्रा सार्थक पुण्य लाभदाई हो सकती है अन्यथा तीर्थ यात्रा केवल सुविधा पर्यटन और मनोरंजन तक ही सीमित रह जाती है। पालीताणा तीर्थ पर जाए तो पाप कर्मों का क्षय होना चाहिए ना कि पाप कर्म बढ़ना चाहिए इसका इसकी पूरी सावधानी रखना चाहिए। पालीताणा तीर्थ पर किए गए तप व पुण्य कर्म का पुण्य फल 100 गुना मिलता है। परमात्मा तो हमें मोक्ष देने को सदैव तत्पर रहते हैं लेकिन हम हमारा हृदय संसार में लगाए रहते हैं। हम सदैव यह मेरा है के मेरा है के भाव को हृदय में भरे हुए रहते हैं तो जबकि वास्तव में धर्म प्रभु मेरा है के भाव रहना चाहिए लेकिन हम स्वस्थ सुरक्षित होकर परमात्मा और धर्म को भूल जाते हैं चिंतन का विषय है। हम सोने वाला महल भी बना लें तो वह साथ जाने वाला नहीं है। -धर्म सभा में लब्धि पूर्णा श्री जी महाराज साहब ने कहा कि बच्चों का मन निर्मल होता है। मेले में यदि वह कोई खिलौना देख लेता है तो खिलौना चाहे कितना ही उपयोगी हो या नहीं बच्चा तो वही खिलौना लेने की जिद कर लेता है और माता-पिता को वह खिलौना उसे दिलाना ही पड़ता है चाहे वह अनुपयोगी क्यों ना हो इसी प्रकार संसार में रहते हुए मनुष्य को धर्म देव गुरु तपस्या की जिद्द करने की ठान लेना ले तो उसे प्राप्त करने में सफलता मिल सकती है। और आत्म कल्याण रुपी मोक्ष मार्ग मिल सकता है। श्रीपाल राजा ने धन वैभव सुख राज्य सब कुछ त्याग दिया था और केवल मात्र अपनी तपस्या पर ही अपना लक्ष्य निर्धारित किया और मोक्ष मार्ग को प्राप्त किया था। हमें परमात्मा के सामने मांगना भी नहीं आता है हम मांगते वह है जो संसार को बढ़ाता है जबकि हमें वास्तव में वह मांगना चाहिए जो संसार को दूर करें और परमात्मा और सम्यक दर्शन मोक्ष को पास लाए। परमात्मा से मांगने की सूची हमारी प्रतिदिन बदलती रहती है यदि हम एक लक्ष्य तय कर ले तो परमात्मा हमें वह वस्तु प्रदान कर सकता है। जैन व्यक्ति की बात को समझने में हमें बहुत परिश्रम लगता है है जबकि दुर्जन व्यक्ति की बात हमें जल्दी समझ में आ जाती है चिंतन का विषय है। मंदिर दर्शन के लिए हमें प्रवेश के विधान का संस्कारों का ज्ञान होना आवश्यक है। साध्वी श्री जी ने दर्शन विधान, पूजा विधान, नंदन वृक्ष, चंपा वृक्ष, थाना नगरी, वस्तु पाल, मदन मंजरी, मदन मंजूषा, मंदिर के बाहर डेरी निर्माण का विधान, आदि धार्मिक विषयों के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महत्व प्रतिपादित किया। धर्म सभा में नीमच की बेटी कोबेटी मृदु पूर्णा, प्राप्ति पूर्णा, केवल पूर्णा, नीमच की बेटी जिनांर्ग पूर्णा श्री जी आदि ठाना का सानिध्य भी मिला। नवपद ओली जी तपस्या पर अमृत प्रवचन आज श्री जैन श्वेताम्बर भीडभंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट नीमच के तत्वावधान में साध्वी अमीदर्शा श्री जी महाराज साहब के पावन सानिध्य में प्रतिदिन नवपद ओली जी तपस्या की आराधना के विषय परअमृत धर्म सभा प्रवचन श्रृंखला पुस्तक बाजार स्थित नुतन आराधना भवन में प्रतिदिन सुबह 9:15 बजे अमृत धर्म प्रवचन श्रृंखला प्रवाहित हो रही है। सभी समय पर उपस्थित होकर धर्म तत्व ज्ञान गंगा का पुण्य लाभ ग्रहण करें।