तीन दिन उपवास के बाद जैन मुनी आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ब्रम्हलीन हो गए। जैन मुनि ने देर रात 2 बजकर 30 बजे छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरी तीर्थ पर समाधि ले ली।
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के देह त्यागने से देशभर में शोक की लहर है।
जानिए उनसे जुड़ी 10 खास बातें...
1. आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज एक प्रख्यात दिगंबर जैन आचार्य थे। वे जैन धर्म के तपस्वी, अहिंसा, करुणा, दया के प्रणेता और प्रखर कवि संत शिरोमणि थे।
2. प्रतिवर्ष आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को बेलगांव जिले के गांव चिक्कोड़ी में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ तथा नाम विद्याधर रखा गया।
3. उनकी माता आर्यिकाश्री समयमति जी और पिता मुनिश्री मल्लिसागर जी दोनों ही बहुत धार्मिक थे। विद्यासागर जी का घर का नाम पीलू था।
4. उन्होंने कक्षा नौवीं तक कन्नड़ भाषा में शिक्षा ग्रहण की और 9 वर्ष की उम्र में ही वे धर्म की ओर आकर्षित हो गए और उसी समय आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का संकल्प कर लिया। उन दिनों विद्यासागर जी आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज के प्रवचन सुनते रहते थे।
5. इसी प्रकार धर्म ज्ञान की प्राप्ति करके, धर्म के रास्ते पर अपने चरण बढ़ाते हुए मुनिश्री ने मात्र 22 वर्ष की उम्र में अजमेर (राजस्थान) में 30 जून 1968 को आचार्यश्री ज्ञानसागरजी महाराज के शिष्यत्व में मुनि दीक्षा ग्रहण की।
6. विद्यासागर जी महाराज जी ने कन्नड़ भाषा में शिक्षण ग्रहण की। इसके बाद उन्होंने अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत और बंगला आदि 7 भाषाओं का ज्ञान अर्जित करके उन्हीं भाषाओं में लेखन कार्य भी किया। विद्यासागर जी का 'मूकमाटी' महाकाव्य सर्वाधिक चर्चित है।
7. आज कई गौशालाएं, स्वाध्याय शालाएं, औषधालय, आदि विद्यासागर महाराज जी की प्रेरणा और आशीर्वाद से स्थापित किए गए हैं तथा कई जगहों पर निर्माण कार्य जारी है।
8. आचार्यश्री द्वारा पशु मांस निर्यात के विरोध में जनजागरण अभियान भी चल रहा हैं तथा अमरकंटक में 'सर्वोदय तीर्थ' नाम से एक विकलांग निःशुल्क सहायता भी केंद्र चल रहा है।
9. विद्यासागर जी ने पशुधन बचाने, गाय को राष्ट्रीय प्राणी घोषित करने, मांस निर्यात बंद करने को लेकर अनेक उल्लेखनीय कार्य किए हैं।
10. आचार्यश्री विद्यासागर जी वे मानव जाति के ऐसे प्रकाश पुंज थे, जो धर्म की प्रेरणा देकर जीवन के अंधेरे को दूर करके मोक्ष का मार्ग दिखाने का महान कार्य करते थे।