उत्तराध्ययन सूत्र के अध्ययन से आत्म कल्याण का मार्ग संभव प्रवर्तक श्री - विजयमुनिजी म. सा

Neemuch headlines November 6, 2023, 8:33 pm Technology

नीमच । महावीर स्वामी की अंतिम देशना उत्तराध्ययन सूत्र में ज्ञान की आराधना का महत्व बताया गया है। यह ज्ञान का भंडार है। जीवन में ज्ञान के बिना कुछ भी संभव नहीं है। ज्ञान होने पर ही हम प्रभु की वाणी को समझ पाते हैं तथा धर्म का पालन कर पाते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र के अध्ययन के पाठ और धर्म तत्व को समझने से जीवन में पुण्य कर्म का संचय होता है तथा इससे आत्म कल्याण भी संभव है जिस प्रकार गंदे कपड़े को धोने के लिए कुछ समय पूर्व पानी में गलाना पड़ता है उससे कपड़ों में लगा मेल जल्दी साफ हो जाता है। उसी प्रकार उतराधाययन सूत्र के अध्ययन से हमारी आत्मा को मेल साफ करने के ज्ञान तत्व की सहायता मिलती है।

उत्तराध्ययन सूत्र के अध्ययन से जो ज्ञान मिलता है उससे आत्म कल्याण संभव है। यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न विजयमुनिजी म. सा. ने कही। वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर भवन में आयोजित चातुर्मास धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने उत्तराध्ययन सूत्र के 15-16 एवं 17 वें अध्ययन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि श्रमण जीवन की महानतम साधना का उल्लेख किया गया है । सभिक्षु अध्ययन में साधु जीवन की आचार संहिता का वर्णन किया गया है। और यह बताया गया है कि आचार संहिता का पालन करता है वही साधु कहलाता है। ऐसे ही 16वें अध्ययन में साधु जीवन की महानतम नींव के रूप में 10 प्रकार की ब्रह्मचर्य समाधि की साधना बताई गई है। जो भी आत्मा इसका तन मन धन से पालन करती है उसे देवता भी नमन करते हैं। और जो उपरोक्त अध्यात्म भावों का पालन नहीं करते हैं उसके लिए सत्रवें अध्याय में पापी श्रमण की उपाधि दी गई है । अतएव हमें यह पढ सुनकर अपने जीवन को उत्तम गुणों से जोड़ना चाहिए अर्थात साधुता के भाव में आना चाहिए। महावीर की वाणी में श्रमण की महत्ता महत्वपूर्ण है।

उत्तराध्ययन सूत्र श्रवण कर हम अपने जीवन को पवित्र पावन बना सकते हैं। इंद्रभुती (गौतम स्वामी) ने अपने तपस्या के अनुभव के बाद उपदेश में कहा था की आत्मा शरीर के सहारे है । आत्मा बिना शरीर कुछ नहीं कर सकता । आत्मा जीव कर्मों का कर्ता भोक्ता है। इंद्राभुती ने भी अपने जीवन में भगवान महावीर के चरणों में रहकर ज्ञान प्राप्त किया और विनम्रता को अर्जित किया । त्याग तपस्या आज भी प्रेरणादायक है। यही इंद्रभुती आगे चलकर गौतम स्वामी के रूप में प्रख्यात हुए। गीता के 18 अध्याय है जिसमें श्री कृष्ण ने अर्जुन को भक्ति कर्म ज्ञान योग का महत्व समझाया है। इसी प्रकार महावीर ने 18 अध्ययन बताएं । प्रथम अध्ययन आत्मा का है। उसमें आत्म, साधना, कर्म, जीवन वृतांत सहित अनेक 17 अध्ययन का उल्लेख बताया है, 18वां मोक्ष है। जैन दर्शन के शास्त्र जैन तत्व प्रकाश, जैन दिवाकर ज्योति पुंज सहित विभिन्न धर्म ग्रंथो का प्रतिदिन अध्ययन करें तो मोक्ष मार्ग संभव हो सकता है।

साध्वी डॉक्टर विजया सुमन  जी महाराज साहब ने कहा कि महावीर स्वामी की दिव्य देशना के अंतिम संदेश में उत्तराधययन सूत्र में महावीर स्वामी ने कहा कि त्रियंच आत्मा चंडकौशिक नाग ने महावीर स्वामी को इस लिया था उसके बाद भी उसको दूध की धारा बहाई और उसे धर्म तत्व का बोध कराया और उसे क्षमा किया और अंत में उसका मोक्ष हो गया था इस प्रकार महावीर स्वामी ने हजारों प्राणियों को धर्म तत्व का बोध करवा कर मोक्ष की राह बताई थी जो आज भी आदर्श प्रेरणादाई प्रसंग है। इस अवसर पर चातुर्मास के मध्य तपस्या उपवास के साथ नवकार महामंत्र भक्तामर पाठ वाचन, शांति जाप एवं तप की आराधना भी हुई। सभी समाजजन उत्साह के साथ भाग लेकर तपस्या के साथ अपने आत्म कल्याण का मार्ग प्राप्त कर रहे हैं। चतुर्विद संघ की उपस्थिति में चतुर्मास काल तपस्या साधना निरंतर प्रवाहित हो रही है। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की। धर्म सभा में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा., अरिहंतमुनिजी म. सा. ठाणा 4 आदि ठाणा का सानिध्य मिला।

चातुर्मासिक मंगल धर्मसभा में सैकड़ों समाज जनों ने बड़ी संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया और संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया। धर्म सभा का संचालन भंवरलाल देशलहरा ने किया।

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