आत्महत्या करने वाला व्यक्ति अंधा प्रेत बनता है, पिंडदान करने से भी नहीं मिलती है मुक्ति-पं.भीमाशंकर शास्त्री

दुर्गाशंकर लाला भट्ट January 25, 2023, 4:41 pm Technology

जीरन। लंबा धागा और लंबी जुबान हमेशा समेट कर रखनी चाहिए प्रायः उलझ ही जाते हैं । द्रोपति अगर अपनी जबान को समेट कर रखती और अंधे का पुत्र अंधा नहीं कहती धरती के इतिहास का इतना बड़ा महाभारत युद्ध नहीं होता। भाग्यशाली हैं वह माता पिता जिन्हें अपना बेटा भोजन दे रहा है, जो बेटा माता पिता की सेवा नहीं करते हैं वह नर्क भोगने हैं। परमात्मा से जोड़ दे ऐसा सतगुरु चाहिए।

मन की वृत्ति फूटी हुईं हैं संपत्ति के अंहकार एवं समाज के अहम में भक्ति रूपी क्यारी तक ज्ञान नहीं पहुंच पाएगा। बुद्धि रूपी क्यारी अगर 10 जगह से फुटी हुईं है तो परमात्मा की भक्ति प्राप्त नहीं हो सकती।शब्द चयन, भाषा का प्रवाह और भाषाशैली व्यक्ति के व्यक्तित्व को उजागर करते हैं, व्यंगबाण और उपहास महाभारत युद्ध का कारण बन गए।व्यक्ति अपनी भाषा और बोली से जग जीत सकता हैं, हमारी मर्यादित भाषा अनजान लोगों का मन भी मोह लेती हैं वहीं कुत्सित और दुषित भाषा अपनो को भी पराया कर देती हैं।अंधविश्वास में उलझता मानव आज धर्म की राह से भटकता जा रहा हैं। उक्त अमृतवाणी कथा मर्मज्ञ पंडित भीमाशंकर शास्त्री धारियाखेड़ी के मुखारविंद से ग्राम पिराना ग्रामवासीयों के सहयोग से प्राथमिक विद्यालय परिसर में स्थित धर्म पंडाल में उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं को श्रीमद भागवत ज्ञानगंगा प्रवचन के दोरान दुसरे दिन मंगलवार को आत्मसात करवाते हुए कहीं।

उन्होंने कहा कि अगर नदियों की तरह मर्यादा में बंधकर शब्द प्रवाह करती है तो खुशहाली लाती है मगर जब वह मर्यादा के किनारे को तोड देती है तो फिर बाढ विभीषिका ला देती हैं।इतिहास गवाह है कि जब जब भाषा और बोली ने अपनी गरीमा त्यागी है तब तब तबाही हूई हैं।कथा मर्मज्ञ पं. श्री भीमाशंकर शास्त्री ने कहा है कि बांसुरी में गांठ नहीं है इसलिए भगवान अपने मुंह पर लगाते हैं, और जब फूंक मारते हैं तो मधुर स्वर निकलता है।

इसी तरह मनुष्य को भी अपने मन में कोई गांठ नहीं रखनी चाहिए। चेतन मन की गांठे फट जानी चाहिए।जब भी बोलना है मिठे स्वर ही बोलना चाहिए।जो लोग दुसरो की निन्दा (बुराई)करते है ऐसे व्यक्ति को कौवों की गिनती मे गीने जाते हैं। धर्म के प्रति अंधविश्वास करनेवाले लोग धर्म की राह से भटकते जा रहे हैं। रामायण मनुष्य को जीवन का संदेश देती है,तो भागवत मृत्यु और मोक्ष की पथ प्रदर्शक है।कुछ लोग आडंबर रचकर स्वयं को भगवान तुल्य दर्शाने का प्रयत्न करते हैं, जबकि भगवान तो हमारे कर्म में हैं।

गीता का श्रवण गंगा समान पूण्य होता हैं। आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है। आत्महत्या करने वाला अंधा प्रेत बनता है आत्महत्या करने वाला धरती का सबसे बुजदिल है और जघन्य पाप है। पिंड दान करने से भी मुक्ति नहीं मिलती हैं अंधा प्रेत बनता है आत्म आत्महत्या करने वाला व्यक्ति। श्रीमद भागवत कथा प्रवचन के बिच बिच मे पंडित भीमाशंकर शास्त्री अपने सुरीले कंठ से अत्याधुनिक वाध्ययंत्र की सुमधुर स्वर लहरियों के साथ.. मेरा तार हरी से जोड़े ऐसा कोई संत मिले.. माता-पिता से जो दगा करेगा चार जन्म पछताएगा .. मत कर बुरे कर्म बंदे मेरे राम की नजर से नहीं बच पाएगा .. एक बात पूछती है बाबूजी .. आदि सुमधुर भजनों को पूरे मनोभाव से आत्मसात कर रहे हैं।

श्रीमद भागवत ज्ञान गंगा मे डुबकियां लगाने हेतु बडी संख्या मे श्रोताओं का सैलाब उमड रहा हैं। श्रीमद भागवत ज्ञान गंगा प्रवचन के दोरान शिव-पार्वती, राजा परीक्षित, पांडव, विदूर, देवहूती, भगवान कपिल, सुखदेव मुनि, उत्थानपाद, द्रुव, सुनिती, सुरुचि, धुन्दकारी का सारगर्भित प्रसंग का स्मरण कराया।

प्रतिदिन श्रीमद भागवत ज्ञान गंगा प्रवचन दोपहर 11:30 बजे से शाम 3 बजे तक प्रवाहित की जा रही हैं। कथा समिति के सदस्यों ने क्षेत्र कि समस्त धर्मप्रेमी जनता से अपिल की है कि निर्धारित समय पर अधिक से अधिक संख्या मे पहुंच कर धर्म लाभ ले।

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