नीमच । संसार असार है भव लोक का अंत करना है तो स्वयं की आत्मा के कल्याण के लिए प्रतिदिन एक घंटा पूजा भक्ति तपस्या के लिए समय निकालना होगा तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। संसार में रहते हुए एक समस्या का निराकरण करते हैं तो दूसरी समस्या सामने आ जाती है। समस्या का दूसरा नाम ही संसार होता है। संसार भौतिक सुखों का संसाधन है। आत्मा के सच्चे सुख का नहीं। आत्मा की जागृति के बिना सच्चा शाश्वत सुख नहीं मिलता है.
यह बात साध्वी महतरा मनोहर शिशु परम पूज्य प्रज्ञा नीधि प्रशांत मन प्रियंकरा श्री जी मसा ने कही। वे जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट पुस्तक बाजार के तत्वाधान में आराधना भवन में आयोजित धर्म सभा में बोल रही थी। उन्होंने कहा कि संसार में रहते हुए आत्मा के लिए चाहे कितना ही पुरुषार्थ क्यों न कर ले लेकिन आत्मा की जागृति का उल्लास नहीं मिला तो परमात्मा की भक्ति करना भी सार्थक नहीं होती है। मोक्ष मार्ग की ओर जाना है तो आत्मा में चेतना लाना आवश्यक है। संसार के मोह को त्याग कर परमात्मा की तीर्थ यात्रा पर जाना चाहिए। यदि हम मंदिर के तीर्थ दर्शन की लाइन में खड़े हैं और कोई अनजान व्यक्ति हमारी लाइन में हमसे आगे आकर खड़ा हो जाता है तो हमें क्रोध आ जाता है लेकिन यदि कोई अपना व्यक्ति लाइन में आगे आगे खड़ा हो जाता है तो हम उसे कहते हैं की दर्शन कर ले लेकिन अनजान को नहीं, यह मन और आत्मा में भेद नहीं होना चाहिए तभी हमारी आत्म कल्याण हो सकता है। अपने मन को प्रसन्न करने के लिए मनपसंद वस्तु खरीदने हैं इसलिए हमें अच्छी बातें ही ग्रहण करना चाहिए पूरी बातों को त्याग कर देना चाहिए उन्हें ग्रहण नहीं करना चाहिए सहनशीलता का विकास होना चाहिए सहनशीलता की कमी ही हमें दर्द देती है सहनशीलता रहे तो दवाई की भी आवश्यकता नहीं होती है।
हम इतने सरल है कि हमें प्रतिकूल वाणी व्यवहार भी सहन नहीं होता है सहन करेंगे तो आत्मा का विकास हो सकता है। यदि हम सहनशील बनेंगे तो परमात्मा चल के अपने पास आ सकते हैं। मानव जन्म दुर्लभ और कठिन है इसे हमें समझना होगा। मन की भक्ति में आनंद लेना चाहिए तभी जीवन सुखी हो सकता है। संसार के प्रत्येक जीव को हर हाल में सुख चाहिए। संसार के सभी व्यक्ति मानते हैं कि संत का जीवन सुखी होता है लेकिन संत कोई बना नहीं चाहता है। हम मंदिर में पहुंचकर अक्षय मृत्यु प्राप्त करने के लिए अक्षय तिथि की प्रार्थना करते हैं जन्म मरण परंपरा दुःख का कारण है हम जब जन्म लेते हैं तो हम रोते हैं जग हंसता है। जब मृत्यु होती है तो हम हंसते हैं और जग रोता है इस विषय को हमेशा समझना होगा तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। 55 वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ क्षेत्र में भय का वातावरण था लोग धर्म से दूर रहते थे लेकिन साध्वी मनोहर शिशु जी महाराज साहब ने धर्म के लिए अलख जगाई और लोगों को धर्म की राह से जोड़ दिया था जो आज भी प्रेरणादाई प्रसंग है। जिन शासन की सेवा के लिए ही संत शिक्षा ग्रहण करते हैं जिन शासन की सेवा करना ही उनका कर्तव्य होता है।