आषाढ़ मासिक शिवरात्रि पर ऐसे करें शिव शंभू की पूजा, जानें विधि और महत्व

Neemuch headlines June 16, 2023, 8:39 am Technology

प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है। आषाढ़ माह की मासिक शिवरात्रि कल यानी 16 जून 2023 को है। इस दिन शिव जी की पूजा की जाती है। इस दिन रात्रि प्रहर की पूजा का विशेष महत्व होता है। भगवान भोलेनाथ को समर्पित ये तिथि शिव भक्तों के लिए बहुत खास होती है। मान्यता है कि मासिक शिवरात्रि पर विधि पूर्वक व्रत और पूजन करने से भगवान शिव अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

ऐसी मान्यता है कि मासिक शिवरात्रि के दिन मध्यरात्रि में शिव जी और मां पार्वती की पूजा करने से भक्तों पर महादेव की कृपा बनी रहती है। ऐसे में चलिए जानते हैं मासिक शिवरात्रि की पूजा विधि और महत्व... इस दिन से शुरू हो रही है

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि, नोट कर लें पूजा सामग्री की लिस्ट और विधि:-

आषाढ़ मासिक शिवरात्रि 2023 तिथि आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 16 जून को सुबह 08 बजकर 39 मिनट से शुरू होकर 17 जून शनिवार को सुबह 09 बजकर 11 मिनट तक रहेगी।

मासिक शिवरात्रि के लिए निशिता पूजा का मुहूर्त महत्वपूर्ण होता है, इसलिए आषाढ़ माह की मासिक शिवरात्रि का व्रत 16 जून 2023, शुक्रवार को रखा जाएगा।

पूजा मुहूर्त:-

आषाढ़ मासिक शिवरात्रि की पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 05 बजकर 23 मिनट से सुबह 10 बजकर 37 मिनट तक है।

इसके बाद दोपहर में उत्तम मुहूर्त 12 बजकर 22 मिनट से 02 बजकर 07 मिनट तक है।

रात में लाभ-उन्नति मुहूर्त 09 बजकर 51 मिनट से रात 11 बजकर 07 मिनट तक है।

वहीं निशिता पूजा का मुहूर्त देर रात 12 बजकर 02 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट तक है। 

 आषाढ़ अमावस्या के दिन जरूर करें ये उपाय, पितृदोष और कालसर्प दोष से मिलेगी मुक्ति मासिक शिवरात्रि पूजा विधि मासिक शिवरात्रि के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें।

इस दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा भी करनी चाहिए। शिव जी के समक्ष पूजा स्थान में दीप प्रज्वलित करें।

यदि घर पर शिवलिंग है तो दूध, और गंगाजल आदि से अभिषेक करें।

शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा आदि अवश्य अर्पित करें।

पूजा करते समय नम: शिवाय मंत्र का उच्चारण करते रहें। अंत में भगवान शिव को भोग लगाएं और आरती करें।

पूजा के वक्त पढ़ें ये मंत्र:-

ॐ नमः शिवाय।

नमो नीलकण्ठाय।

ॐ पार्वतीपतये नमः।

ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।

ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा।

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